छठ पूजा की असली कहानी क्या है?
छठ पूजा, जिसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है, एक प्राचीन हिंदू पर्व है। यह मुख्यतः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। छठ पूजा सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है। इस पूजा में व्रती (पूजा करने वाले) कठिन तपस्या और संयम के साथ चार दिनों तक उपवास रखते हैं और सूर्य देव की आराधना करते हैं।
छठ पूजा की पौराणिक कथा
छठ पूजा की कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कहानी महाभारत काल की है। माना जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत का पालन किया था। इस पूजा से उसे सूर्य देव का आशीर्वाद मिला और पांडवों को पुनः राज्य प्राप्त हुआ।
दूसरी मान्यता के अनुसार, यह पूजा रामायण काल से भी जुड़ी है। जब भगवान राम और माता सीता 14 वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, तब उन्होंने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर सूर्य देव की उपासना की थी। उस समय सीता माता ने इस व्रत का पालन किया और सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त किया। तभी से छठ व्रत की परंपरा शुरू हुई।
छठी मैया की कथा
छठ पूजा में छठी मैया की आराधना का भी विशेष महत्व है। छठी मैया को सूर्य देवता की बहन माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि वे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं। कहा जाता है कि जो महिलाएँ नि:संतान होती हैं या संतान के सुख-शांति की कामना करती हैं, वे इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करती हैं।
व्रत की प्रक्रिया
छठ पूजा का व्रत चार दिनों तक चलता है, जिसमें हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है:
- पहला दिन – नहाय-खाय: पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन व्रती गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं।
- दूसरा दिन – खरना: दूसरे दिन खरना मनाया जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को अर्पित प्रसाद जैसे खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं।
- तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है। व्रती अपने परिवार के सदस्यों के साथ सूर्यास्त के समय जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
- चौथा दिन – प्रातः अर्घ्य और पारण: चौथे दिन, यानी सुबह के समय, व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद वे अपना व्रत खोलते हैं जिसे पारण कहते हैं।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा केवल सूर्य और छठी मैया की आराधना का पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और मानव जीवन के बीच के संबंध को दर्शाता है। सूर्य देव जीवन शक्ति और उर्जा के प्रतीक माने जाते हैं और यह पर्व हमें उनके प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर देता है। इस पूजा के दौरान लोग प्रकृति के करीब जाते हैं, नदी के तट पर पूजा करते हैं, और समाज में एकता और भाईचारे की भावना का विकास होता है।
छठ पूजा का महत्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से है, बल्कि यह मनुष्य को कठिनाइयों का सामना करने, अनुशासन, धैर्य, और समर्पण का प्रतीक भी है।
छठ पूजा की असली कहानी और महत्त्व
छठ पूजा, जिसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख हिंदू पर्व है जो मुख्य रूप से भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित होता है। इस पर्व में श्रद्धालु कठिन तपस्या और संयम का पालन करते हैं, जो इसे अन्य हिंदू त्योहारों से अलग और विशेष बनाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में उपवास, पूजा-अर्चना, और जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की विशेष परंपरा है।
छठ पूजा की पौराणिक कहानियाँ
छठ पूजा की उत्पत्ति और इसके पीछे की कहानियों के संदर्भ में विभिन्न पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से दो प्रमुख कथाएँ महाभारत और रामायण काल से जुड़ी हैं।
- महाभारत काल की कथा
महाभारत की एक कथा के अनुसार, पांडवों ने जुए में अपना सारा राज्य खो दिया था। इस दुखद परिस्थिति में, द्रौपदी ने अपने परिवार की सहायता के लिए सूर्य देवता की उपासना की। उसने छठ व्रत का पालन किया, जिसके फलस्वरूप पांडवों को राजपाट वापस मिल गया और उनके सभी कष्ट दूर हुए। माना जाता है कि इस घटना के बाद छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई और यह जन-जन तक फैली। यह कथा हमें बताती है कि इस पूजा के माध्यम से विपत्तियों को दूर करने और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करने की प्रार्थना की जाती है। - रामायण काल से जुड़ी मान्यता
रामायण काल से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता 14 वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, तब उन्होंने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर सूर्य देव की उपासना की। माता सीता ने इस व्रत का पालन किया और सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। माना जाता है कि तभी से छठ व्रत की परंपरा आरंभ हुई। इस कथा में छठ पूजा का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व स्पष्ट होता है और यह भी दर्शाता है कि यह पर्व सदियों से हमारे समाज का हिस्सा रहा है। - छठी मैया की महिमा
छठ पूजा में छठी मैया का भी विशेष स्थान है। छठी मैया को सूर्य देवता की बहन माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि वे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं। छठी मैया की पूजा उन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखती है जो संतान सुख की कामना करती हैं या अपनी संतानों की खुशहाली के लिए प्रार्थना करती हैं। माना जाता है कि जो महिलाएँ छठ व्रत का पालन करती हैं, उन्हें छठी मैया और सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके परिवार में सुख-समृद्धि और संतान का सुख बना रहता है।
छठ पूजा का व्रत और अनुष्ठान
छठ पूजा का व्रत चार दिनों तक चलता है और इसमें हर दिन की एक विशेष प्रक्रिया होती है। इस कठिन व्रत में व्रती (पूजा करने वाले) संयम और श्रद्धा के साथ विभिन्न अनुष्ठानों का पालन करते हैं। इन चार दिनों में प्रत्येक दिन के अनुष्ठान का एक विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है।
- पहला दिन – नहाय-खाय
छठ पूजा के पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन व्रती सुबह जल्दी उठकर गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करते हैं। इसके बाद व्रती घर आकर शुद्ध भोजन करते हैं, जिसमें लौकी, चने की दाल और चावल शामिल होते हैं। इस दिन भोजन को बहुत शुद्ध और सात्विक रूप में तैयार किया जाता है, ताकि शुद्धता बनाए रखी जा सके। नहाय-खाय से शरीर और मन को शुद्ध करने का प्रयत्न होता है। - दूसरा दिन – खरना
दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को अर्पित प्रसाद का सेवन करते हैं, जिसमें खास तौर पर गुड़ से बनी खीर, रोटी और केले का प्रसाद शामिल होता है। इस दिन का उपवास बहुत कठिन होता है और इसे पूरे नियमों का पालन करते हुए किया जाता है। खरना का व्रत करने से व्रती का मन और आत्मा शुद्ध होती है और वह पूरी तरह से अपनी श्रद्धा में लीन हो जाता है। - तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य का आयोजन होता है। इस दिन व्रती अपने परिवार के साथ सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के तट पर जाकर जल में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं। संध्या अर्घ्य का यह अनुष्ठान सूर्य देव के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। इस दौरान महिलाएं परंपरागत वेशभूषा में होती हैं और पूजा स्थल पर भक्ति के गीत गाए जाते हैं। इस पूजा के समय वातावरण में एक विशेष ऊर्जा होती है जो सभी लोगों को भक्ति में सराबोर कर देती है। - चौथा दिन – प्रातः अर्घ्य और पारण
छठ पूजा के अंतिम दिन, यानी चौथे दिन, सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसे प्रातः अर्घ्य कहते हैं। इस दिन व्रती सूर्योदय से पहले नदी या तालाब के तट पर पहुंच जाते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस पूजा के बाद व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं जिसे पारण कहा जाता है। पारण के बाद व्रती सामान्य भोजन करते हैं और व्रत समाप्त करते हैं। प्रातः अर्घ्य के समय वातावरण भक्तिभाव से परिपूर्ण होता है और सभी लोग छठी मैया और सूर्य देवता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है। यह केवल सूर्य और छठी मैया की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है। सूर्य देव को जीवन की ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है, जो हमें हर दिन जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। इस पूजा में सूर्य देव और छठी मैया के प्रति आभार व्यक्त करने का भाव होता है। इसके साथ ही यह पूजा सामुदायिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है, क्योंकि इस दौरान लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं।
छठ पूजा मनुष्य के अनुशासन, धैर्य और समर्पण को भी दर्शाता है। इस पर्व में तपस्या और कठिनाई के बावजूद व्रती अपनी पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ पूजा करते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में अनुशासन और संयम का महत्व क्या है और कैसे कठिन परिस्थितियों में भी संयम बनाए रखना चाहिए।